Monday, 31 December 2012

कोरे पन्नो पर आसुंओं की लिखावट...




कोरे पन्नो पर आसुंओं की लिखावट....
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आज फिर से नजर आइ वही पुरानी डायरी...
बरबस हाथ बढ गये उठाने को...
कुछ कोरे पन्नो पर...
पुरानी स्याही के साथ आसुंओं की लिखावट...

मन को कुछ भिगो गये...
फिर से प्रश्नचिन्ह...
मैं ही क्यों?

?
और कब तक?
तब तो शिकायत ना थी शायद उम्मीद वजह थी...
आज शिकायत ही शिकायत है...क्योकि अब तो...
उम्मीद भी नहीं...

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फिर कुछ अलग सी मुस्कराहट होठों पर...
हाथो को उन पन्नो पर यूं फिराया...
जैसे ढांढस बंधाया हो...
मै हुं ना तुम्हे सम्भालने को...
आज भी तुम्हे,और तुम में लिखी हुई ...
आसुंओ की लिखावट को...

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