हदों मे सिमटी दहलीज़ के दायरे में ...
सपनों की उड़ान लगाई
है...
संस्कारो की जंजीर मे जकड़ी ...
गहना समझ इठ्लाई है...
दुआओं में नहीं किसी की ...
बिन मांगे तू आई है...
ठोकरों को झेल रही तू ...
सबको संभालती आई है...
जीवन की हर मुश्किलों से ...
पल पल और शक्ति पाई
है...
स्वार्थ से परे मोह, दुलार ...
ममता की दौलत लुटाई है...
पग पग प्रहार सहकर भी ...
होसलों को बढाती आई है...
जीवन का यथार्थ है फिर भी ...
आस्तित्व को खोजती आई है...
चुनोतीयों भरे हर क्षण मे भी ...
तूने सफलता पाई है...
अग्निपरीक्षा के हर स्तर पर...
कभी न हार पाई है...
हे नारी...
नारी है हाँ तू नारी है सारे जंहा से भी न्यारी है ...
आसमां मे पंख फैलाये उड़ने की अब तेरी ही बारी है
...
ब्लॉग जगत मे आपका स्वागत अल्पना जी
ReplyDeleteThanx Gajendra sa
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