ढेर होते दिखे सपने दहशत भरी आंखो को
कराह भी अब मजबूर हुई दर्द मे छिपने को
चुन चुन कर मसला गया अस्मत की पंखुड़ियों को
आत्मा तक छिल गई तरस न आया दरिंदों को
महफूज कहाँ हर माँ ने समेटा आँचल में बेटी को
हेवानियत फेली दिखती चहु और केसे बचाऊँ उसको
अभी सनसनी कल सुनी हुई बीती बात होगी परसो
जख्म गहरे तन पर मगर मन पर निशान उम्र भर को
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