Monday, 31 December 2012

कल तक...?




कल तक...?

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कुछ अच्छा सा महसुस हो रहा है, आज मन में...
लगता है बहुत खुश हूँ में आज..
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चीडीयों का चहचहाना बडा ही मधुर लग रहा है...कल तक बडी चिढ थी...
ये ठन्डी हवाये बहुत लुभा रही है... कल तक तो शांति से बेठने भी नहीं देती थी...
आज इन बच्चो के साथ खेलने का मन कर रहा है... कल तक भगाती थी...
मन हो रहा है आज सबके दुखो को दूर कर दु... कल तक उनका दुख मुझसे कम लगता था...
मै गलत थी अब तक... कल तक ये मानने को सहमत भी नहीं थी...
क्यू...?
शायद आज जीना चाहती है जिंदगी... कल तक तो ये भी इसके खिलाफ थी... 

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