नारी!!!
चंद शब्दो को मिलाकर ही मुझे परिभाषित कर दिया तुमने !
क्या इसकी व्याख्या कुछ खुल कर नहीं कर सकते !!
अथाह सागर भी कहते हो मेरे दिल मन को और
ना जाने कितने मनोभावों का नाम मुझमे निहित किया है
प्यार, स्नेह, ममता...
अबला ,सबला ...
शक्ति, सृष्टि...
वगेरह वगेरह
तब भी क्यों ? संतुष्ट नहीं होते ?
हर मुश्किल मे परीक्षा देने के लिए मुझे मजबूर भी करते हो ...और
मुझे परिभाषित करने के लिए चंद सरल शब्दो को ही चुनते हो ...
में कठिन हूँ कहते हो, और खुद के लिए मुझे सरल बनाते हो
आखिर क्यों ?........... अल्पना
चंद शब्दो को मिलाकर ही मुझे परिभाषित कर दिया तुमने !
क्या इसकी व्याख्या कुछ खुल कर नहीं कर सकते !!
अथाह सागर भी कहते हो मेरे दिल मन को और
ना जाने कितने मनोभावों का नाम मुझमे निहित किया है
प्यार, स्नेह, ममता...
अबला ,सबला ...
शक्ति, सृष्टि...
वगेरह वगेरह
तब भी क्यों ? संतुष्ट नहीं होते ?
हर मुश्किल मे परीक्षा देने के लिए मुझे मजबूर भी करते हो ...और
मुझे परिभाषित करने के लिए चंद सरल शब्दो को ही चुनते हो ...
में कठिन हूँ कहते हो, और खुद के लिए मुझे सरल बनाते हो
आखिर क्यों ?........... अल्पना
वाह !!! बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित रचना....
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
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