Thursday 6 August 2015

मेरे ख्याल


मेरे ख्याल.... बस यूँ ही....
कई दफा खामोशियो के शोर में
जब सुनती हूँ, रात के सन्नाटे को
चीरती दूरसे आती किसी ढोल 
बजने की आवाज़ जेसे दूर इक
गाँव ढाणी कबीला अब भी उसी
दौर में,चंद ख़ुशी के मौके में भी
मंद आग के उजाले की लौ में
ढोल बजाकर तमाम ख़ुशी मना
रहा हो । और में सोच रही हूँ कि
कितना दूर निकल आई अब में
उस गुजरे दौर की पकड़ से !
यहाँ शहर में !!!
कल होने वाली सुबह के शोर में
खुद को खो देने के लिए .....
अनजाने मकसद ....
अंतहीन राहे...
कभी मद्धम चाल ...
कुछ तेज़ समय ...
शून्य की ओर....
स्वयं को दौड़ाने के लिए.......
.
हाँ रात की खामोशी को चीरती
वो दूर से आती ढोल की आवाज़
इतना झकझोर जाती है............. अल्पना

4 comments:

  1. अनजाने मकसद ....
    अंतहीन राहे...
    कभी मद्धम चाल ...
    कुछ तेज़ समय ...
    शून्य की ओर....
    स्वयं को दौड़ाने के लिए.
    शब्दों और संवेदनाओं का खूबसूरत संगम है आप के कलम में !!

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  2. प्राणायाम कीजियेगा ! ॐ शान्ति शान्ति !!

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