Monday 31 December 2012

ज्योत




नफरत तो बहाना है तुमसे, ये तो बुज़दिली है उनकी  
बाहें फैलाए हुए है हम , बदना तो आगे  है तुझे  ही   


तू कुदरत का बेमिसाल तोहफा कबूल न कर सका जो  
बड़ा ही बदनसीब है वो जो समझ सका न तुझे 
 ही ,  


आओ उंगली थामो और चलो कदम से कदम मिलाओ
मंज़िले खड़ी  इंतज़ार मे  , मगर  पाना तो है तुझे ही


ज्ञान की मिसाल बनकर इन नफ़रतों को बेमानी बनाओ  

तू ज्योत है ज्योत से ज्योत जलानी तो है तुझे ही   

ए जिंदगी...



डूबे हुए हैं इतने गहरे फिर भी साँसे है बची हुई ...
फिर भी खिंचू में तुझे और तू भी खींचे मुझे ए जिंदगी...

आंखे पत्थर इनमे सपने समाये क्या कंही ...
न तुझे मे रास आऊ ना ही मुझे तू ए जिंदगी ...

घीसट कर चलती साथ मेरे तू मंज़िल का पता नहीं ...
हर क्षण गुजरे तू एक एक क्षण गुजारू में तुझे ए जिंदगी...

तू क्यू मुझ पर इतनी मोहताज, न रही में कभी सहारा तेरी ...
तुझे में और मुझे तू थामे है फिर भी ए जिंदगी...

पलके...



सिसकते आँसुओ की बुंदों में अक्सर सँजोये सपने बह जाते है ...

कोशिश इन्हे रोकने की तो बहुत करती हैं पलके...

फिर भी न जाने क्यूं ये छलक जाते हैं ... 

इस बेकद्री की आलम ...



इस बेकद्री की आलम ...

तेरी चाहत की इन्तहाँ में बर्बाद क्या हुए ...कि 
मेरी हर बरबादी पर तूने तो जश्न मना डाले ...

कल तक...?




कल तक...?

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कुछ अच्छा सा महसुस हो रहा है, आज मन में...
लगता है बहुत खुश हूँ में आज..
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चीडीयों का चहचहाना बडा ही मधुर लग रहा है...कल तक बडी चिढ थी...
ये ठन्डी हवाये बहुत लुभा रही है... कल तक तो शांति से बेठने भी नहीं देती थी...
आज इन बच्चो के साथ खेलने का मन कर रहा है... कल तक भगाती थी...
मन हो रहा है आज सबके दुखो को दूर कर दु... कल तक उनका दुख मुझसे कम लगता था...
मै गलत थी अब तक... कल तक ये मानने को सहमत भी नहीं थी...
क्यू...?
शायद आज जीना चाहती है जिंदगी... कल तक तो ये भी इसके खिलाफ थी... 

एक एहसास...तुम्हारे जाने के बाद...


एक एहसास...तुम्हारे जाने के बाद...
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जब तुम चले गये थे...
नहीं तुम गये ही नहीं ...शायद यहीं हो ...

पर तुम गये...तो फिर ये?.. एक पहचानी सी खुशबू, लगा तुम यहीं हो...
इस फैली खामोशी में वही हंसी, ठहाको की गूंज...
यहां की हर चीज पर तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति...
बिल्कुल वही सांसो की हल्की फुसफूसाहट...

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सुनो!!
..आती हूँ..चौक कर खडी हो गई...
ओह! पर तुम तो चले गये, फिर भी कानो में वही परिचित पुकार..

हां, तुम तो गये ही नहीं...
मेरे दिल से...मेरे जेहन से...

हं! तभी क्यूं लगे मुझे कि तुम हो यहीं मेरे आस पास...
मेरे हर काम में, सोच में, बातों में तुम्हारे होने का एहसास...
कि तुम यहीं हो मेरे पास...

कोरे पन्नो पर आसुंओं की लिखावट...




कोरे पन्नो पर आसुंओं की लिखावट....
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आज फिर से नजर आइ वही पुरानी डायरी...
बरबस हाथ बढ गये उठाने को...
कुछ कोरे पन्नो पर...
पुरानी स्याही के साथ आसुंओं की लिखावट...

मन को कुछ भिगो गये...
फिर से प्रश्नचिन्ह...
मैं ही क्यों?

?
और कब तक?
तब तो शिकायत ना थी शायद उम्मीद वजह थी...
आज शिकायत ही शिकायत है...क्योकि अब तो...
उम्मीद भी नहीं...

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फिर कुछ अलग सी मुस्कराहट होठों पर...
हाथो को उन पन्नो पर यूं फिराया...
जैसे ढांढस बंधाया हो...
मै हुं ना तुम्हे सम्भालने को...
आज भी तुम्हे,और तुम में लिखी हुई ...
आसुंओ की लिखावट को...

अस्मत



ढेर होते दिखे सपने दहशत भरी आंखो को
कराह भी अब मजबूर हुई दर्द मे छिपने को


चुन चुन कर मसला गया अस्मत की पंखुड़ियों को
आत्मा तक छिल गई तरस न आया दरिंदों को 


महफूज कहाँ हर माँ ने समेटा आँचल में बेटी को
हेवानियत फेली दिखती चहु और केसे बचाऊँ उसको

अभी सनसनी कल सुनी हुई बीती बात होगी परसो
जख्म गहरे तन पर मगर मन पर निशान उम्र भर को


 


Sunday 30 December 2012

सपनों की उड़ान



हदों मे सिमटी दहलीज़ के दायरे में ...
               सपनों की उड़ान लगाई है...

संस्कारो की जंजीर मे जकड़ी   ...
              गहना समझ इठ्लाई  है...

दुआओं में नहीं किसी की  ...
              बिन मांगे तू आई है...

ठोकरों को झेल रही तू  ...
            सबको संभालती आई है...

जीवन की हर मुश्किलों से ...
              पल पल और शक्ति पाई है...

स्वार्थ से परे मोह, दुलार ...
             ममता की दौलत लुटाई है...

पग पग  प्रहार सहकर भी ...
            होसलों को बढाती आई है...

जीवन का यथार्थ है फिर भी ...
             आस्तित्व को खोजती आई है...

चुनोतीयों भरे हर क्षण मे भी ...
           तूने सफलता पाई है...

अग्निपरीक्षा के हर स्तर पर...
           कभी न हार पाई  है...

हे नारी...
 नारी है हाँ तू नारी है  सारे जंहा से भी   न्यारी  है ...
           आसमां मे पंख फैलाये उड़ने की अब तेरी ही बारी है ...